सरदार पानसे वाडा.
भारत माता ने इतने वीरों को जन्म दिया है की उनकी गणना करना असंभव है। ऐसे ही एक वीर जिन्होंने मराठा साम्राज्य के विस्तार में अभूतपूर्व योगदान दिया,जिन्होंने पेशवाई के साथ मिलकर हैदर जैसे शत्रुको मार गिराया, जिनका नाम है सरदार पानसे। सरदार पानसे अब सासवड शहर के पास 'सोनोरि' गांव के पानसे वाडा/हवेली में चिरंतन काल के लिए विश्राम कर रहे है। इस हवेली के अवशेषों के बारे में जानने से पहले सरदार पानसे का इतिहास जान लेते है।
पेशवाई के सुवर्णकाल में और गिरते काल में भी, पानीपत के लड़ाई से लेकर अंग्रेजो के आक्रमणों तक, पानसे घराने के अनेक पीढ़ियों ने मराठेशाही के लिए अपना योगदान दिया है। उनकी एकनिष्ठता और शौर्य की वजह से ही, पेशवा ने उन्हें अपने तोफखाने की जिम्मेदारी सौप दी थी। उन सरदारों में सबसे शूरवीर थे सरदार बिवराव यशवंतराव पानसे। उनके ही कालखंड में पेशवाई तोफखाने की अधिक प्रगति हुई। उन्होंने पेशवा का साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्धभूमि में भी दिया था। पेशवाई और मराठा साम्राज्य का पतन रोकने के लिए उन्होंने बहोत कष्ट किये। उनके योगदानों की सूचि बड़ी लम्बी है। निजाम के विरुद्ध राक्षस भूमि की लड़ाई हो, या फिर हैदर के विरुद्ध श्रीरंगपट्टनम में हुई लड़ाई, कोल्हापुर के आंतरिक कलह का हल निकलना हो या फिर कर्नल स्टुअर्ट के साथ के साथ पेशवा की निर्णायक लड़ाई हो , इन सब में सरदार पानसे का योगदान अतुलनीय है। पेशवा घराने का उनपर बहुत विश्वास था। उन्हें पेशवाओ के साथ उनके निजी मामलो या फिर राज्य के मामलो की चर्चाओं में सहभागी होने के लिए निमंत्रित किया जाता था। उनके दिए हुए सुझावों को पेशवा कार्यान्वित करते थे।
जब पानीपत के युद्ध में सदाशिराव भाऊ गायब हो गये, तब उनका नाम लेकर बहुत सारे लोग खुद को सदाशिव राव भाऊ बताकर पेशवाई में दाखिल होने के लिए आ रहे थे। इसे मराठी में 'तोतया का विद्रोह' भी कहा जाता है। तब इस विद्रोह का बंदोबस्त करने में सरदार पानसे का बड़ा योगदान रहा है। भीवराव पानसे उन गिने चुने लोगो में से थे जिनको पेशवाओं के हर एक चर्चा में सहभागी होने का अधिकार था। वडगाव की लड़ाई में अंग्रेजो को पराजित करने के बाद वह उनके गांव 'सोनोरि' लौटे। परन्तु इसके बाद उनका स्वस्थ्य दिनबदिन बिगड़ता गया और वह ८ मार्च १७७१ को कालवश हो गए। उनके कार्यकाल में बंधा हुआ 'मल्हारगढ़' जो सोनोरि गांव से दिखता है, उनके वीरता, साहस और एकनिष्ठता का प्रतीक बनकर आज भी खड़ा है। सरदार पानसे की धर्मपत्नी ने उनके साथ सहगमन किया। सरदार भीवराव पानसे की मृत्यु के कारण पूरी मराठेशाही हिल गई। उनके कार्यकाल में बंधा हुआ 'मल्हारगढ़' जो सोनोरि गांव से दिखता है, उनके वीरता, साहस और एकनिष्ठता का प्रतीक बनकर आज भी खड़ा है। सरदार पानसे की धर्मपत्नी ने उनके साथ सहगमन किया। सरदार भीवराव पानसे की मृत्यु के कारण पूरी मराठेशाही हिल गई।
प्रवेशद्वार देखते ही मन में दुखद भावों की निर्मिति होती है। ऐसे शूरवीर सरदार की हवेली को इस परिस्थिति में देखकर मन में क्लेशपूर्ण भावों की जाग्रति होती है। प्रवेशद्वार के अंदर जाते ही दाहिने तरफ हवेली के कुछ खंडहर नजर आते है। संभव है की यह सभा मंडप होगा। आगे जाते ही प्राचीन विष्णु का मंदिर है। विष्णु मूर्ति बहुत ही आकर्षक है। यह मूर्ति किसी इस्लामिक हमलावरों से बचकर सरदार पानसे ने यहाँ पर लाइ थी। कर्नाटक से यह मूर्ति लाई गई है ऐसा फलक वहां पर लगाया गया है। उसी मंदिर के पीछे है हवेली का प्रमुख भाग। जहा पर रहती है सरदार पानसे की ६५ वर्षीय वंशज 'मंगल रमेश पानसे'। उन्होंने उस भाग को बड़े अच्छे तरीके से संभाला है। साफ सुदरा रखा है। लेकिन उसकी नीव अब पुरानी होने के कारण उसकी कभी भी गिरने की सम्भावना है। मंगल जी से बात करते हुए उन्होंने इस हवेली के बारे में बहुत सारी कहानिया हमें बताई और यह भी बताया की इसकी देख रेख करने की कितनी आवश्यकता है। ६५ वर्षीय बूढी माँ वहा अकेली रहती है और उनके साहस की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम होगी।
उस मुख्यभाग से निकलते ही आपको नजर आएगा प्राचीन गणेश मंदिर जहा पर सोनोरि गांव के लोगो की गहरी श्रद्धा है। मंगल जी और अन्य लोग इस गणेश मंदिर की देख रेख करते है। यह मंदिर अत्यंत सुन्दर मंदिर है। मंदिर के बाद हवेली की आखरी कमान नजर आती है और हवेली ख़तम हो जाती है। पूरा खंडहर हुई यह हवेली की देखरेख करना अनिवार्य है। हवेली के बाहर आते ही दाहिने तरफ देखते ही दिखती है सरदार पानसे की समाधी। समाधी को पानसे मंडल ने अच्छी तरह से रखा है। लेकिन इतने बड़े शूरवीर योद्धा की समाधी जनमानस को पता चलनी चाहिए। इसके लिए भारत सरकार, पानसे मंडल और अन्य स्वयंसेवी संघटनाओने प्रयास करने की आवश्यकता है। मै और मेरे साथी, झुंज संस्था की तरफ से कुछ ही दिनों की इस वास्तु को सुधारने हेतु एक योजना बना रहे है। कुछ ही दिनों में मै उसकी पूरी योजना ट्विटर एवं फेसबुक के माध्यम से बताऊंगा। आशा करता हु की सभी हिन्दू दोस्त मिलकर, इस वास्तु के जीर्णोद्धार में योगदान देंगे।
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